उच्च न्यायालय ने पेयजल निगम से हटाये गए तीन अधिशासी अभियंताओं को दी बड़ी राहत

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नैनीतालः उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पेयजल निगम से हटाये गए तीन अधिशासी अभियंताओं को बुधवार को राहत देते हुए उनकी नियुक्ति खारिज करने संबंधी प्रबंध निदेशक (एमडी) के आदेश को निरस्त कर दिया है। याचिकाकर्ता मनीष कुमार , सुमित आनंद और मुज्जमिल हसन की ओर से दायर याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश जी0 नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ में सुनवाई हुई।        

मामले के अनुसार वर्ष 2005 में तीनों याचिकाकर्ताओं को उत्तराखंड पेयजल निगम में आरक्षित पदों के सापेक्ष सहायक अभियंता के पद पर नियुक्ति दे दी गई। दस वर्ष बाद 29 जून, 2015 को तीनों को पदोन्नति का लाभ दिया गया और उन्हें अधिशासी अभियंता बना दिया गया। इसी बीच एक सामाजिक कार्यकर्ता की ओर से शिकायत दर्ज की गई कि तीनों लोग उत्तराखंड के मूल निवासी नहीं हैं और उन्हें आरक्षण नियमावली के तहत गलत नियुक्ति दी गई है।        

निगम के एमडी ने आरक्षण नियमावली का हवाला देते हुए 25 जून, 2024 को तीनों की नियुक्ति को खारिज कर दिया। पीड़ित पक्ष की ओर से एमडी के आदेश को उच्च न्यायलय में चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि एमडी को नियुक्ति की समीक्षा का अधिकार नहीं है और न ही उनके आरक्षण संबंधी दस्तावेज फर्जी हैं। सरकार को नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान इन तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए था। इस बीच सरकार उन्हें पदोन्नति भी दे चुकी है।

दूसरी ओर सरकार की ओर से कहा गया कि शिकायती पत्र की जांच के बाद तीनों की नियुक्ति को निरस्त किया गया है। तीनों की नियुक्ति गलत हुई थी। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता शुभांग डोभाल ने बताया कि खंडपीठ ने तीनों याचिकाओं को स्वीकार करते हुए एमडी के आदेश को निरस्त कर दिया है।

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