डॉ. आंबेडकर के विचार भारत की सीमाओं से परे भी गूंजते हैं, संयुक्त राष्ट्र में बोले रामदास अठावले

संयुक्त राष्ट्र : सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने समानता, प्रतिनिधित्व और मानवाधिकार के जिन सिद्धांतों के लिए लड़ाई लड़ी, वह आज 2030 के सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामूहिक प्रयासों में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है। वह संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में डॉ. भीमराव आंबेडकर की 135वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे।
अठावले ने कहा, ‘‘डॉ. आंबेडकर का जीवन केवल भारत के लिए नहीं, संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने जाति, गरीबी और औपनिवेशिक उत्पीड़न की सीमाओं को पार करते हुए वैश्विक मानवाधिकार आंदोलन में अहम भूमिका निभाई।’’ संबंधित कार्यक्रम भारत के स्थायी मिशन द्वारा आयोजित किया गया जिसमें भारतीय प्रवासी, संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी और नागरिक समाज के सदस्य शामिल हुए। अठावले ने कहा कि मंत्रालय डॉ. आंबेडकर की विरासत को जमीनी स्तर पर उतारने के लिए कई योजनाएं चला रहा है जिनमें अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए ‘नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप’, ‘पीएम-दक्ष योजना’ और ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए ‘स्माइल स्कीम’ शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने कहा कि डॉ. आंबेडकर लोकतंत्र को जीवनशैली मानते थे और संविधान की नैतिकता को लागू करने के लिए संस्थागत ढांचे को माध्यम मानते थे। ‘फाउंडेशन फॉर ह्यूमन होराइजन’ के अध्यक्ष दिलीप म्हसके और हार्वर्ड डिविनिटी स्कूल के ‘विजिटंग प्रोफेसर’ संतोष राऊत ने भी डॉ. आंबेडकर के विचारों की वैश्विक प्रासंगिकता को रेखांकित किया।