रामपुर तिराहा कांड में दो सिपाहियों को सजा के बाद अन्य आरोपियों की सजा का इंतजार

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देहरादून: उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के दौरान  1994 में हुए रामपुर तिराहा कांड के तीस साल बाद फैसला आया है। जिसमें दो सिपाहियों को सजा सुनाई गयी है। राज्य आन्दोलनकारियों ने इस फैसले पर अदालत का आभार जताया है।
 उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर निहत्थे आंदोलनकारी दिल्ली के लाल किला पर रैली करने जा रहे थे। एक और दो की रात अचानक उन पर पुलिस ने गोलियां बरसा दीं। महिलाओं की अस्मत लूटी गई। कई आंदोलनकारियों की जान चली गई।

गोलीकांड के 30 साल बाद फैसला आया है। दो सिपाहियों को सजा सुनाई गई है। राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि इस कांड के कई बड़े गुनहगार हैं जिनके गुनाह का फैसला होने का इंतजार है।वह दौर था जब अलग राज्य की मांग के लिए मातृ शक्ति, युवा, कर्मचारी, आम जनता और छात्र तक सड़कों पर उतर आए थे। चरम पर पहुंचे आंदोलन को मंजिल तक पहुंचाने के लिए दिल्ली के लाल किला में रैली निकालने के लिए गढ़वाल और कुमाऊं से आंदोलनकारियों के जत्थे बसों में सवार होकर दिल्ली की ओर निकल पड़े।

गढ़वाल से आ रहे आंदोलनकारियों को मुजफ्फरनगर, कुमाऊं से जा रहे आंदोलनकारियों को मुरादाबाद में रोका गया। आंदोलनकारियों का रास्ता बंद करने के लिए सड़क पर ट्रकों की लाइन लगाकर जाम लगा दिया गया। कुमाऊं के आंदोलनकारियों के पास कोर्ट का एक आदेश था, जिसमें कहा गया था कि आंदोलनकारियों को सुरक्षित दिल्ली जाने और वापस आने  दिया जाए। इस आधार पर कुमाऊं के आंदोलनकारियों को दिल्ली जाने की अनुमति दी गई। गढ़वाल से आ रहे आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाईं गईं। तब पुलिस के बड़े अफसरों और कई अधिकारियों के नाम सामने आए थे। अब तक कई गुनहगारों की मौत हो चुकी है।

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