जैविक खाद्य और कीनुआ कुपोषण के लिये सबसे कारगर उपायः स्वामी चिदानन्द सरस्वती

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ऋषिकेश: परमार्थ निकेतन में संयुक्त सचिव जल शक्ति मंत्रालय जगमोहन गुप्ता और ज्वांइट सेक्रेटरी खाद्य मंत्रालय नदिता गुप्ता जी पधारे। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट का जल शक्ति मंत्रालय और नमामि गंगे के साथ मिलकर जल और नदियों के संरक्षण हेतु कार्य करने हेतु विशद चर्चा हुई।

स्वामी ने कहा कि अब जरूरत है कम जल वाली फसलों का रोपण किया जाये ताकि भूमिगत जल का संरक्षण हो सके। जैविक खेती, कीनुआ की खेती (कीनुआ- प्रोटीन से भरपूर और फाइबर से समृद्ध अनाज है जिससे कुपोषण में भी कमी आयेगी)। जल संरक्षण के लिये ‘शुष्क कृषि तकनीक’ को अपनाना सबसे बेहतर होगा।

स्वामी जी ने कहा कि जल समस्या वर्तमान समय का सबसे बड़ा मुद्दा है जिस पर पूरे राष्ट्र को मिलकर कार्य करना होगा तभी भावी पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित रखा जा सकता है क्योंकि भारत में आबादी के अनुपात में पहले ही जल की उपलब्धता बहुत कम है। खेती में अत्यधिक जल वाली फसलों का रोपण किया जाये तो भूमिगत जल का तीव्र दोहन होगा जिससे जल संकट उत्पन्न होगा और यह स्थिति अत्यंत  भयावह हो सकती है।


स्वामी जी ने कहा कि भारत को जल संकट से निपटने के लिये जल संरक्षण को एक क्रान्ति का स्वरूप देने की जरूरत है। भारतीयों की मजबूत मनोबल, दढ़ इच्छाशक्ति एवं जल शक्ति मंत्रालय की कारगर नीति के आधार पर जल संकट से निपटा जा सकता है। भारत मंे सर्वाधिक जल का उपयोग कृषि क्षेत्र में ही हो रहा है जिसको कम करने की प्रबल संभावनाएँ भी मौजूद हैं इसलियेे भारत में जल संकट से उबरने के लिये  कृषि क्षेत्र में कम पानी वाली फसलों को प्राथमिकता देनी होगी, इसके लिये भारत शुष्क कृषि तकनीक हेतु इजराइल का सहयोग भी ले सकता है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी को कीनुआ पूरी तरह से पूरी कर सकता है। कुपोषण से समाज के एक बड़ा हिस्सा प्रभावित है इस हेतु जागरूकता की कमी है। कुपोषण संबंधी समस्यायें कम करने के लिये जैविक खाद्य और कीनुआ सबसे कारगर उपाय है।

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