कैंटीन के सामान के नाम पर सोलह लाख की घपलेबाजी, सीबीआइ ने आई0टी0बी0पी0 के अधिकारी और जवानों के घर खंगाले

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देहरादून; भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) की सीमाद्वार (देहरादून) स्थित 23वीं बटालियन की कैंटीन में सामान और सीमा क्षेत्र में तेल टैंकर पहुंचाने के नाम पर करीब 16 लाख रुपये की घपलेबाजी के मामले में सीबीआइ ने तत्कालीन कमांडेंट सहित नामजद सब इंस्पेक्टर और असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर के घर पर दबिश दी।

इस मामले में बिहार में पटना, जहानाबाद व सारण के साथ ही उत्तराखंड में देहरादून और उत्तर प्रदेश में सहारनपुर में आरोपितों के आवास और कार्यालय परिसरों में तलाशी ली गई। इस दौरान काफी दस्तावेज सीबीआइ के हाथ लगे हैं।

आइटीबीपी सीमाद्वार के मौजूदा कमांडेंट सेंदिल कुमार ने इस घपलेबाजी की शिकायत अगस्त 2021 में सीबीआइ से की थी। इसमें उन्होंने बताया कि आइटीबीपी की 23वीं बटालियन ने अगस्त 2017 से अक्टूबर 2019 तक तीन अलग-अलग फर्मों से कैंटीन के लिए सामान की खरीद की थी।

नौ लाख छह हजार रुपये की यह खरीद नियमों के विपरीत की गई। बिल साधारण लेटर पैड पर लिए गए और भुगतान नकद किया गया। इस दौरान बटालियन के कमांडेंट अशोक कुमार गुप्ता थे।

इसके अलावा चमोली जिले में माणा के लिए कैरोसीन का एक टैंकर भेजा गया, जबकि कागजों में दो दिखाए गए और सात लाख 16 हजार रुपये का अतिरिक्त भुगतान कर दिया गया। इस मामले में आइटीबीपी ने कोर्ट आफ इंक्वायरी बिठाई थी।

इसमें घपलेबाजी की पुष्टि होने पर 23वीं बटालियन के तत्कालीन कमांडेंट अशोक कुमार गुप्ता, सब इंस्पेक्टर सुधीर कुमार, असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर अनसूया प्रसाद और सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) निवासी साजिद (सामान सप्लायर) के विरुद्ध सीबीआइ ने इसी 20 जुलाई को मुकदमा दर्ज किया था। अब सीबीआइ आरोपित तत्कालीन कमांडेंट व जवानों की संपत्ति जांच कर रही है।

  • कैंटीन के लिए राशन खरीद न तो निविदा प्रक्रिया के माध्यम से की गई थी और न ही स्थानीय खरीद समिति के माध्यम से। बिना किसी एमओयू के सामान खरीदा गया।
  • क्रय प्रक्रिया का उल्लंघन कर किसी भी प्रकार की खरीद के लिए कोई आपूर्ति आदेश नहीं दिया गया।
  • उचित बिल बुक के बजाय निजी फर्मों के लेटरपैड पर बिल तैयार किए गए। तीनों फर्मों का स्वामित्व एक ही व्यक्ति के पास है।
  • कैंटीन के अध्यक्ष कमांडेंट अशोक कुमार गुप्ता ने वित्तीय नियमों का उल्लंघन करते हुए बिलों का भुगतान नकद किया। इसे चेक या बैंकिंग के माध्यम से होना था।
  • बिलों के भुगतान के लिए फर्म से रसीद प्राप्त नहीं गई। सभी रसीद या तो नकली हैं या खुद कैंटीन के कर्मचारियों ने तैयार की हैं।
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