पद्मश्री अवधेश कौशल का निधन, पर्यावरण और समाजसेवा में बीता पूरा जीवन
देहरादून: अपनी हर सांस को पर्यावरण के समर्पित करने वाले मशहूर पर्यावरणविद् समाजसेवी पद्मश्री अवधेश कौशल नहीं रहे। आज सुबह देहरादून के मैक्स हॉस्पिटल में 86 वर्षीय अवधेश कौशल ने अंतिम सांस ली। वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे। इस खबर को सुनकर देश और दुनियाभर के पर्यावरण प्रेमियों का दिल बैठ गया। पर्यावरण संरक्षण और समाज सेवा के ऐसे नजाने कितने काम हैं जिन्हें अवधेश कौशल ने लंबी लड़ाई के बात जीत लिया था। उन्होंने 80 के दशक में दून-मसूरी के बीच लम्बे समय से चल रही चूना भट्टा खदानों को बंद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अवधेश कौशल रुलेक संस्था के जरिये शिक्षा, पर्यावरण और समाज सेवा का कार्य कर रहे थे। 2003 में वीक पत्रिका ने उन्हें मैन आफ द ईयर सम्मान से नवाजा था। पद्मश्री अवधेश कौशल सरकारों की कार्यप्रणाली के खिलाफ काफी मुखर रहते थे। नारायण दत्त तिवारी काल में तो उन्होंने प्रदेश के सबसे करप्ट नौकरशाहों को चिन्हित करने के लिए जनता की राय ली और बेईमान अधिकारी चिन्हित कर राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी थी। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों की मिलने वाली सुविधाओं को हाई कोर्ट में चुनौती देकर बंद कराने में भी उनका ही योगदान रहा है। जन सरोकारों की जो लड़ाई उन्होंने बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए वर्ष 1972 में शुरू की थी, अंतिम समय तक तमाम मुकाम हासिल कर अनवरत जारी रही। आज अगर देश में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम-1976 लागू है तो उसका श्रेय पद्मश्री अवधेश कौशल को ही जाता है। 82 वर्ष की उम्र तक अवधेश कौशल सक्रिय रहे और इसके बाद उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा। वो जब तक जिंदा रहे उनका दिल पर्यावरण, प्रकृति और समाज के लिये धड़कता रहा, और आज जब उन्होंने अपनी आंखें मूंदी तो वो हमेशा हमेशा के लिये वो उसी प्रकृति के पंच महाभूतों में समा गये। उनके निधन पर देश की छोटी-बड़ी हस्ती ने दुख प्रकट किया है। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपनी संवेदना प्रकट करते हुये परम शांति की प्रार्थना की है।