मानव अधिकार समिति ने ‘वानप्रस्थ आश्रम’ पर किया सेमीनार का आयोजन
देहरादून: मानव अधिकार कल्याण समिति मुख्यालय हरिद्वार द्वारा ‘‘वानप्रस्थ आश्रम’’ पर एक सेमीनार आयोजित किया गया जिसमें वानप्रस्थ आश्रम के उपप्रधान मधुसूदन आर्य ने प्रकाश डाला। आर्य ने कहा कि हिन्दु धर्म के जीवन में चार प्रमुख आयाम है ब्रह्यचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम। तीसरे भाग वानप्रस्थ आश्रम का अर्थ वन प्रस्थान करने वाले से है। मनुष्य की आयु 100 वर्ष मानकर प्रत्येक आश्रम 25 वर्षो का होता है।
इस आश्रम में व्यक्ति के लिए गृहस्थ को त्यागकर समाज एवं देश के लिए योगदान देने की अपेक्षा की जाती है। उन्होंने बताया वानप्रस्थ आश्रम हिन्दु धर्म में चोदहवां संस्कार है। वानप्रस्थ अलगाव की भावना का नाम है। जीवन एक यात्रा है। उसमें हमें आगे बढ़ते जाना है। जो इंसान ग्रहस्थ के बाद स्वयं आगे चल देते हैं। उनकी मान मर्यादा प्रतिष्ठा बनी रहती है जो ऐसा नहीं करते उनकी हालत गृहस्थ में रहकर खराब हो जाती है।
वानप्रस्थ आश्रम के प्रधान डी0के0 शर्मा ने कहा कि प्राचीन ऋषियों ने सन्तान के माता-पिता के प्रति ऋण को जिसे वे पितृ ऋण कहते है। चुकाने के लिए एक दूसरा मार्ग बतलाया था। उन्होंने यह मार्ग नहीं बतलाया कि माता-पिता बुढ़े होकर घर में चैकी पर बैठ जाय और पुत्र उनकी पूजा करें। माता-पिता के लिए उन्होंने यहीं कर्तव्य बतलाया कि वे गृहस्थ के बाद वानप्रस्थ को जाए। उनकी सन्तान पितृ ऋण को चुकाने के लिए गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करें और अपने से उत्तम सन्तान संसार में छोड़ने का प्रयत्न करें।
राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री लायन एस0आर0 गुप्ता ने कहा कि आज हमारे समाज को वानप्रस्थ की भावना की जरूरत है। धार्मिक तथा नैतिक कर्तव्यों का पालन करते हुए व्यक्ति सक्रिय जीवन में तटस्थ रहते हुए गृहत्याग कर वानप्रस्थ में प्रवेश करता हैय तब उसका राग-द्वैष जाता रहता है। तटस्थता से ही राग-द्वैष हटता है। यही शिक्षकों का धर्म है। यही यौद्धाओं और धर्म रक्षकों का धर्म भी है। यही मोक्ष का मार्ग है और यही आचार्यो का धर्म माना गया है।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा0 पंकज कौशिक ने बताया कि वानप्रस्थ का अर्थ है सब संबंधों-नातों को तोड़ देना। वानप्रस्थ में प्रवेश करने के बाद प्रारंभ में वानप्रस्थी समाज और संघ को सबल बनाने के लिए कार्य करता है फिर वह वन या आश्रम में चला जाता है तब वह पूर्णतरू वानप्रस्थ आश्रम में रहता है। कार्यकारी अध्यक्ष डा0 विशाल गर्ग ने कहा कि वानप्रस्थी का कर्तव्य है कि वह समाज की बुराइयों को मिटाने तथा समाज में वैदिक ज्ञान के प्रचार प्रसार में अपना योगदान दें। जो लोग सनातन मार्ग से भटककर किसी अन्य मार्ग पर चले गए हैं उन्हें वापस सही मार्ग पर लाना तथा वैदिक धर्म को कायम रखने के लिए अथक प्रयास करना ही वानप्रस्थी का कर्तव्य है।
इस अवसर पर अन्नपूर्णा बन्धुनी, आर्य प्रवीण वैदिक, जिला अध्यक्ष हरिद्वार राजीव राय, राष्ट्रीय चैयरमैन प्रकाशन जितेन्द्र कुमार शर्मा, आर0के0 गर्ग, विमल कुमार गर्ग, हेमन्त सिंह नेगी, मन्त्री सविता शर्मा, शोभा छाबड़ा, कमला अग्रवाल, प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव, नीलिमा देवी, ब्रह्मचारिका इन्दु, सुबोध गुप्ता, सारिका खण्डेलवाल, बीना शर्मा, रश्मि गुप्ता, सुनीता जोशी, रेखा नेगी, मन्जु गुप्ता इत्यादि उपस्थित रहे।