वन विभाग वह पौधे लगाएगा जो जीवित रहे: विनोद सिंघल

देहरादून: प्रतिवर्ष मानसून के दौरान वन विभाग लाखों की संख्या में पौधारोपण करता है लेकिन बाद में यह पौधे कभी पशुओं के शिकार हो जाते हैं तो कभी सूख जाते हैं। इस बार फिर मानसून सत्र में पौधारोपण की तैयारी है, इसके लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं जो वन विभाग के लिए भारी पड़ सकते हैं।
उत्तराखंड का 65 प्रतिशत वन क्षेत्र वन्य क्षेत्र है। उसके साथ ही साथ प्रतिवर्ष सरकार लाखों रुपये खर्च करके एक करोड़ से भी ज्यादा पौधे रोपने का काम करती है। जुलाई से एक माह का वन विभाग अभियान चलाता है। यही स्थिति हरेला पर्व पर भी होती है। हरेला पर्व के समय भी पौधा रोपण होता है।
इस संदर्भ में गुरुवार को विभाग के प्रमुख विनोद सिंघल ने कहा कि विभाग ने पौधारोपण के कार्यों के लिए तैयारियां प्रारंभ कर दी है ताकि रोपित पौधे पुष्पित पल्लवित होकर जनहित में सुरक्षित रहें। उन्होंने कहा कि पौधारोपण बेहतर ढंग से किया जाए इसके लिए योजनाएं बनाई जा रही है।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट की माने तों कोरोना काल के पहले दो वर्षों में वन्य क्षेत्र महज 0.03 प्रतिशत बढ़ा है। जहां घने जंगल है वहां भी पौधे लगाए गए। आंकड़ों की माने तो 2018 के दौरान लगभग 1.5 करोड़ पौधे लगाए गए थे। इसी प्रकार 2019 में 2 करोड़ पौधे लगा गए। इस बार योजना है कि वृक्षारोपण की जिम्मेदारी वन पंचायतों को दी जाए।
उन्होंने बताया कि इसके लिए वन विभाग योजना बना रहा है कि इस बार पौधरोपण में वह पौधे लगाए जाएं जो जीवित बचे। इसी प्रकार पहली बार प्राइवेट थर्ड पार्टी मॉनिटरिंग करने की दिशा में भी विचार चल रहा है ताकि विभाग पौधे वृक्ष बनकर रोजगार के साथ-साथ समाज विकास में भी अपनी सहभागिता निभाएं।