आसुरी शक्तियों का विशेष पर्व है डगयाली
शिमला : प्रदेश में मनाए जाने वाले तीज त्यौहारों की श्रृखंला में सबसे विचित्र पर्व है डगयाली । जोकि हर वर्ष रक्षा बंधन पर्व के एक माह उपरांत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी व अमावस्या को मनाया जाता है । इस पर्व को विशेषकर जिला शिमला, सिरमौर और सोलन में प्राचीन परंपरा के अनुरूप मनाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसे कृष्ण जन्माष्टमी को भी मनाया जाता है ।
जनश्रुति के अनुसार डगयाली अर्थात डायनों का पर्व माना जाता है बताते हैं कि इस पर्व में आसुरी शक्तियां पूर्ण रूप से जागृत होती है । सूचना प्रौद्योगिकी के युग में भले ही इस त्यौहार के मायने काफी कम हो चुके हैं परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में डगयाली पर्व आज भी पारंपरिक रूप से मनाया जाता है जिसे प्रदेश की समृद्ध संस्कृति का एक अभिन्न अंग माना जाता है । बता दें कि अतीत से ही डगयाली को सबसे भयावह वाला त्यौहार माना जाता रहा है ।
त्यौहार के कुछ दिन पहले स्थानीय देवी देवता के पुजारी घर घर जाकर सुरक्षाचक्र के रूप में देवता के चावल व सरसों के दाने देते हैं जिसे चतुदर्शी की रात्रि को घर के मुख्य दरवाजे पर रखा जाता है ताकि आसुरी शक्तियों का घर में प्रवेश न हो । इसके अतिरिक्त भेखल झाड़ी की टहनियों को भी मंदिर, घर व गौशाला के दरवाजे, खिड़की पर सुरक्षा के रूप में लटकाई जाती है ।
इस पर्व पर विशेषकर अरबी के पत्तों के पतीड़ जिसे स्थानीय भाषा मंे धींघड़े कहते हैं, को बनाए जाते है जिसे अमावस्या की रा़ित्र को घर की दलहीज पर तेजधार चाकू अथवा कुल्हाड़ी से काटकर इसके चार टुकड़े बनाए जाते हैं जिसे छत पर जाकर चारों दिशाओं में डायनों के नाम से चढ़ाया जाता हैं ताकि आसुरी शक्तियां कोई नुकसान न कर सके ।
तांत्रिक डगयाली की रात्रि को साधना के सबसे उपयुक्त समय बताते हैं । इस अमावस्या को शास्त्रों में कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहते हैं । इस दिन लोग पूजा के लिए कुशा उखाड़ कर वर्ष भर घर में रखते है जिसका़ विशेष महत्व माना जाता है। डगयाली सांय ढलते ही लोग घर में दुबक जाते है । बुजुर्गों द्वारा डगयाली की रात्रि को बाहर जाने के लिए विशेषकर मनाई की जाती है ।
वरिष्ठ नागरिक एंव विद्यानंद सरैक, प्रीतम सिंह ठाकुर, विश्वानंद ठाकुर का कहना है कि क्षेत्र कई स्थानों पर विशालकाय शिलाएं आज भी मौजूद है जिस बारे उनके पूर्वज बताते थे कि इन शिलाओं को डायनों ने रात को किसी गांव से उठाकर लाकर यहां रखा था । बताया कि उनके बंुजुर्ग रात्रि को गांव में धान कूटने के उखल के चारों ओर राख डालते थे जिसमें प्रातः डायनोें के पांव के निशान देखने को मिलते थे जो रात्रि को नृत्य करने आती थी । बता दें शिक्षित एवं सभ्य समाज आज भी सबसे ज्यादा अंधविश्वास व रूढ़िवादिता से ग्रसित है । अक्सर शिक्षित व्यक्ति अपनी समस्याओं से व्यथित होकर तांत्रिकों एवं चेलों के जाल में फंस जाते हैं ।