भारत बंद को कांग्रेस का समर्थन, घंटाघर पर किया चक्का जाम
Warning: Attempt to read property "post_excerpt" on null in /home4/a1708rj8/public_html/wp-content/themes/covernews/inc/hooks/blocks/block-post-header.php on line 43
देहरादून: कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों की तरफ से बुलाए गए भारत बंद का असर राजधानी देहरादून में भी देखने को मिला। कांग्रेस पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस भवन से घंटाघर तक पैदल मार्च निकालकर किसानों के समर्थन में प्रदर्शन किया।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और कार्यकर्ता घंटाघर के पास धरने पर बैठ गए. प्रदर्शन के दौरान कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने केंद्र सरकार से कृषि कानून वापस लिए जाने की मांग की और जमकर नारेबाजी की. कांग्रेस ने कृषि कानूनों के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया।
वहीं, भारत बंद का समर्थन करते हुए कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने घंटाघर की ओर आने वाले वाहनों को जबरन रोककर चक्का जाम किया। जिसके कारण राजपुर रोड और चकराता रोड से आने वाले वाहनों की लंबी कतार लग गई। इस मौके पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा कि कृषि कानूनों की आड़ में केंद्र सरकार किसानों का उत्पीड़न और दमन कर रही है। उन्होंने कहा कि किसानों के हितों को देखते हुए सरकार को तत्काल प्रभाव से कृषि कानूनों को वापस लेना चाहिए। किसानों के आंदोलन में कांग्रेस पार्टी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है।
डोईवाला में भी दिखा बंद का असर, कई राजनीतिक दलों का प्रदर्शन
कृषि बिल कानून को लेकर देशव्यापी बंद का असर डोईवाला में भी देखने को मिला। किसानों का समर्थन करते हुए व्यापारियों ने बाजार पूर्ण रूप में बंद रखा। वहीं, कांग्रेस और राजनैतिक दलों ने किसानों का समर्थन किया।
डोईवाला चौक पर कृषि कानूनों के खिलाफ कांग्रेस ने धरना-प्रदर्शन करते हुए केंद्र सरकार का पुतला फूंका। वहीं, किसानों ने कहा कि जब तक कृषि कानून वापस नहीं होगा, तब तक हम चैन से नहीं बैठेंगे।
डोईवाला चैक पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ उत्तराखंड क्रांति दल समेत कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने धरना प्रदर्शन किया। वहीं, व्यापारियों ने भी किसानों का समर्थन करते हुए बाजार को पूर्णतः बंद रखा।
धरना-प्रदर्शन के दौरान किसान नेताओं ने कहा कि अगर कृषि कानून वापस नहीं लिया गया तो आने वाले समय में किसानों को अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। उनकी फसलें ओने-पौने दामों पर बिकेंगी और किसान आर्थिक संकट से जूझ कर आत्महत्या करने को मजबूर हो जाएंगे।