सामाजिक समानता के बिना राष्ट्रीय प्रगति की कल्पना अधूरी: डॉ वीरेंद्र

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देहरादून: भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा आज उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में दो दिवसीय चिंतन शिविर का उद्घाटन किया गया। यह आयोजन समावेशी नीति निर्माण, कल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा और उपेक्षित रहे समुदायों के लिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने हेतु केंद्र एवं राज्य सरकारों के मध्य सहयोग को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। इस चिंतन शिविर का उद्घाटन केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार, राज्य मंत्री रामदास अठावले, राज्य मंत्री बी.एल. वर्मा तथा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की गरिमामयी उपस्थिति में हुआ। कार्यक्रम में विभिन्न राज्यों से आए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के 23 मंत्रीगण भी सम्मिलित हुए।

अपने उद्घाटन भाषण में डॉ.वीरेंद्र कुमार ने कहा सामाजिक समानता के बिना राष्ट्रीय प्रगति की कल्पना अधूरी है। चिंतन शिविर केवल एक समीक्षा बैठक नहीं, बल्कि यह विचार-सृजन, अनुभव साझा करने और श्विकसित भारतश् की दिशा में हमारी प्रतिबद्धताओं की मूल्यांकन प्रक्रिया का एक मंच है। इसका उद्देश्य हैकृहर नागरिक को सम्मानपूर्वक आगे बढ़ने के समान अवसर सुनिश्चित करना, चाहे उसकी जाति, लिंग, आयु, क्षमता या सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। उन्होंने यह भी कहा कि ष्कल्याण से सशक्तिकरण तक की यात्रा हमारी साझा जिम्मेदारी है और यह मंच हमें आत्ममूल्यांकन का अवसर प्रदान करता है, हम कहां हैं और हमें कहां पहुँचना है।

इस चिंतन शिविर में देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशोंकृजैसे आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी आदिकृके प्रतिनिधियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। विचार-विमर्श के पहले दिन शिक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक संरक्षण एवं सुगम्यता जैसे चार प्रमुख स्तंभों पर केंद्रित चर्चा हुई।

दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (क्म्च्ूक्) ने ।क्प्च् योजना, छात्रवृत्तियाँ, कौशल विकास और डिजिटल समावेशन से संबंधित पहलों में हुई प्रगति साझा की। राज्यों ने मोबाइल मूल्यांकन शिविर, समावेशी स्कूल ढांचे, तथा सुगम परिवहन मॉडल जैसे अभिनव प्रयास प्रस्तुत किए। प्री-मैट्रिक, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति तथा पीएम-यशस्वी जैसी योजनाओं के अंतर्गत शैक्षिक समावेशन पर गहन चर्चा हुई। ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में डिजिटल आवेदन, सत्यापन व जागरूकता से जुड़ी चुनौती पर भी चर्चा की गई।

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