उत्पन्ना एकादशी इस दिन, जाने शुभ मुहूर्त व पूजा विधि
माउंटेल वैली टुडे वेबडेस्क: मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्न एकादशी कहा जाता है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत 20 नवंबर को रखा जाएगा। बता दें कि भगवान विष्णु को एकादशी तिथि बहुत प्रिय है। साल में पड़ने वाली 24 एकादशी में से उत्पन्न एकादशी का विशेष महत्व है। तो आइए जानते हैं उत्पन्न एकादशी का महत्व और पूजा विधि। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु से देवी एकादशी प्रकट हुई थी। इस दिन से ही एकादशी व्रत रखने की शुरुआत भी की गई थी। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से इस जन्म के साथ साथ पिछले जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। ऐमजॉन पर टेलीविजन स्टोर, टॉप ब्रैंड टीवी पर 50% तक की छूट |
उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा एक मुर नामक असुर से भगवान विष्णु युद्ध कर रहे थे। युद्ध करते हुए जब भगवान विष्णु थक गए तब वह बद्रीकाश्रम गुफा में जाकर आराम करने लगें। मुर असुर भगवान विष्णु का पीछा करते करते वहां पहुंच गया और वह भगवान विष्णु पर प्रहार करने वाला था। इतने में ही भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ और उस देवी ने राक्षस का वध कर दिया।
भगवान विष्णु देवी से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि देवी तुम्हारा जन्म मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को हुआ है इसलिए आज से तुम्हारा नाम एकादशी होगा। इसी के साथ प्रत्येक एकादशी को मेरे साथ साथ आपकी भी पूजा की जाएगी। साथ ही जो मनुष्य एकादशी का व्रत करेगा वह पापों से मुक्त हो जाएगा।
मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन एकादशी देवी ने अवतार लिया था। इसलिए इसे उत्पन्न के नाम से जाना जाता है और इस एकादशी का काफी विशेष महत्व होता है। इस व्रत को रखने से पुण्य के प्रभाव से व्यक्ति विष्णु लोक में स्थान पाता है।
उत्पन्न एकादशी पूजा विधि इस दिन सुबह जल्द उठकर स्नान कर लें और साफ कपड़े धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल की अच्छे से साफ सफाई कर लें। इसके बाद दीपक जलाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा का अभिषेक कर लें। भगवान विष्णु के अभिषेक के बाद उन्हें सुपारी, नारियल, फल लौंग, पंचामृत, अक्षत, मिठाई और चंदन अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें। साथ ही इस बात का ख्याल रखें की भगवान विष्णु के लिए जो भी भोग निकाले उसमें तुलसी का इस्तेमाल जरूर करें।