लोक संस्कृति और लोक परम्परा इगास के उल्लास में डूबी देवभूमि

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देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की पहल पर लोक संस्कृति एवं लोक परम्परा इगास पर्व पर राज्य वासियों ने अपने गांव से लेकर शहर तक पूरे उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया। संस्थाओं और संगठनों के साथ आम जनता से लेकर खास वर्ग की सहभागिता त्योहार को खुशनुमा और माहौल में रंग दिया।

इगास के मौके पर मुख्यमंत्री आवास में भी लोकगीत लोकनृत्य एवं लोक संस्कृति के साथ लोक परम्पराओं के जीवन्तता की झलक देखने को मिली। मुख्यमंत्री स्वयं भेलो पूजन कर, भेलो खेलने के साथ लोक कलाकारों के साथ लोक नृत्य में भी शामिल हुए।

उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति का प्रतीक है। इगास देहरादून से पहाड़ के गांवों में श्रंखला के तहत ईगास-बग्वाल की धूम दिखी। त्योहार को लेकर सुबह से देर रात सोशल मीडिया पर एक दूसरे के लोग बधाई देते दिखे। इस मौके पर सामाजिक और राजनीतिक दलों के अलावा विभिन्न संस्थाओं की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम का देर रात आयोजन किया गया।

इस मौके पर मुख्यमंत्री ने इगास की बधाई देते हुए सभी से अपनी लोक संस्कृति और लोक परम्पराओं को आगे बढ़ाने में सहयोगी बनने की अपील की। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूरा देश में सांस्कृतिक विरासत और गौरव की पुनर्स्थापना हो रही है। उसी तरह उत्तराखंडवासी अपने लोकपर्व इगास को आज बड़े उत्साह से मना रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले से आजादी के अमृत काल में पंच प्रण के संकल्पों के साथ आगे बढ़ने का आह्वान किया था जिनमें से एक संकल्प यह है कि हम अपनी विरासत और संस्कृति पर गर्व करें। इगास पर्व का आयोजन उत्तराखंडी लोक संस्कृति से नयी पीढ़ी के जुड़ाव को और प्रगाढ़ बनाएगा।

मुख्यमंत्री ने प्रवासी उत्तराखण्डवासियों से भी अनुरोध किया कि वे भी अपने लोक पर्व को अपने गांव में मनाने का प्रयास करें और प्रदेश के विकास में सहभागी बने,सभी के सामुहिक प्रयासों से हम विकल्प रहित संकल्प के साथ उत्तराखण्ड को अग्रणी राज्यों में शामिल करने में सफल होंगे।

बग्वाल वाले दिन भैलो खेलने की परंपरा पहाड़ में सदियों पुरानी है। भैलो को चीड़ की लकड़ी और तार या रस्सी से तैयार किया जाता है। रस्सी में चीड़ की लकड़ियों की छोटी-छोटी गांठ बांधी जाती है। जिसके बाद गांव के ऊंचे स्थान पर पहुंच कर लोग भैलो को आग लगाते हैं। इसे खेलने वाले रस्सी को पकड़कर सावधानीपूर्वक उसे अपने सिर के ऊपर से घुमाते हुए नृत्य करते हैं। इसे ही भैलो खेलना कहा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी सभी के कष्टों को दूर करने के साथ सुख-समृद्धि देती है। भैलो खेलते हुए कुछ गीत गाने, व्यंग्य-मजाक करने की परंपरा भी है।

गढ़वाल में दीपावली त्योहार के 11 दिन के पश्चात बग्वाल, इगास मनाने की प्राचीन परंपरा है। पहाड़ की लोकसंस्कृति से जुड़े इगास, बगवाल पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। कार्तिक मास में इगास, बगवाल पर्व पर शाम के समय गांव के किसी खाली खेत अथवा खलिहान में नृत्य के साथ भैलो खेला जाता है। भैलो एक प्रकार की मशाल होती है, जिसे नृत्य के दौरान घुमाया जाता है।प्रदेश सरकार ने इस लोक पर्व की महत्ता एवं पौराणिकता को देखते हुए ही इस बार बग्वाल, इगास पर (4 नवम्बर, 2022) को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है।

इस मौके पर कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी,प्रेमचन्द अग्रवाल, रेखा आर्या, सुबोध उनियाल, सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक,सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह,नरेश बंसल विधायक उमेश शर्मा काऊ, सविता कपूर,पद्मश्री कल्याण सिंह रावत, महानिदेशक सूचना बंशीधर तिवारी सहित बड़ी संख्या में जनप्रतिनिधि एवं गणमान्य उपस्थित थे।

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